मैं जहां से चली...

#कविता

मैं जहां से चली थी वहीं पर खड़ी रह गई ।

तुम मुझे छोड़ आगे और आगे बढ़ते ही गये ।।

मैं अश्के-दरिया में डूबती उतराती रही ।

तुम हर गम मुझे दे खुश हो आगे बढ़ते गये ।।

मैं दर्दे-दिल को ही बस अपना मुकद्दर समझ ।

कभी रोती रही तो कभी बस हंसती ही रही ।।

मेरी खामोश़ मोहब्ब्त राह देखती रही।

तुम रकीब़ की महफ़िल में जशन मनाते रहे ।।

तुम्हारी खुशियों के लिए बन्दगी करती रही ।

तुम रोज मेरे दिल में एक नश्तर चुभोते रहे ।।

तुम्हें बाहों में लेने को दिल तरसता रहा ।

तुम रकीब को साथ ले आगे बढ़ते ही गये ।।

मैं जहां थी वहीं पर अब तलक खड़ी रह गई ।

तुम सारे नेह-बंधन तोड़ आगे बढ़ते गये ।।

— डॉ० मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश