बेटी ही नहीं...

#कविता

बेटी ही नहीं बेटे भी तो घर से विदा होते हैं
विदा होने के दिन ज्यों ज्यों निकट आते हैं
घर का हर एक कोना चुपचाप निहारा करते हैं
घर के एकांत कोने में छिपकर आंसू बहाते हैं।।

बेटी ही...

सारी मस्ती हंसी ठिठोली मन की तिजोरी में बंद कर
घर से निकलते ही एक समझदार बेटा बन जाता है
जो पहले था एक नन्हा लापरवाह खिलंदड़ा बेटा
बड़ी बड़ी कठिनाइयों का सामना भी अकेले कर लेता है।।

बेटी ही...

अपने आंसू अपनी पीड़ा दिल में छिपाकर
मां पापा भईया दीदी से हंसते हुए विदा लेता है
घर परिवार से जुदा हो दूर जाते हुए भी
मां पापा की चिंता में हर पल व्याकुल रहता है।।

बेटी ही...

अंतर बस इतना ही है बेटी और बेटे की विदाई में
बेटी रोते हुए अपनी मां पापा के गले लग जाती है
कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को एहसास लिए
बेटा अपने आंसू छिपा हंसकर घर से विदा लेता है।‌

बेटी ही...

--डा०मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश