#कविता
मन ही मन मै क्यों घुटती हूं
नारी हूं क्या इसलिए चुप रहती हूं
क्यों गैरों की खुशियों की खातिर
अपने अरमां का दमन मैं करती हूं
हंसी का मुखौटा चेहरे पर चढ़ा
क्यों अश्कों को अपने मैं पीती हूं
दुनियां को दिखाने की खातिर
क्यों अपना आप मैं छुपाती हूं
क्यों नहीं तोड़ती मौन होंठों का ताला
क्यों इस दुनियां से मैं डरती हूं
नारी हूं....
डा०मंजू दीक्षित "अगुम"
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