कभी हंसाते कभी रुलाते

#कविता

कभी हंसाते कभी रुलाते रिश्ते ।
नित नया रुप दिखाते रिश्ते ।।
कभी प्यार का फूल खिलाते‌।
कभी कांटे बन चुभ जाते रिश्ते ।।

रिश्ता कोई अब अनमोल नहीं है।
सम्बोधन का भी कोई मोल नहीं है।।
अपने ही जब खुद अपनों को लूटे ।
फिर किससे कौन निभाए रिश्ते ।।

अब झूठ फरेब की बातों से ।
नित अपना स्वार्थ बनाते रिश्ते ।।
कोमल एहसासों की लाशों को ।
स्वार्थ की सूली रोज चढ़ाते रिश्ते ।।

कोई खोज रहा है यहां दौलत ।
कोई खोज रहा है यहां शोहरत ।।
किसको समझे अब हम अपना ।
जब छलती खुद यहां मोहब्बत ।।

हर आंसू भी हम पी सकते हैं ।
मरुस्थल में भी प्यासे जी सकते हैं ।।
प्यार के तेरे चंद बोलों के बदले ।
हम हर गम हंसकर सह सकते हैं ।।

पतझड़ में भी फूल खिला देते हैं ।।
जब जब प्यार लुटाते ये रिश्ते ।
हर पल हमको तरसाते रहते ।
यादों के दंश चुभोते ये रिश्ते ।।

कभी हंसाते कभी रुलाते रिश्ते ।
नित नया रुप दिखाते रिश्ते ।।

- डा०मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश