आत्मा और काया की...

#कविता

आई जब अंतिम सफ़र की घड़ी

मोह माया से जकड़े मन ने

इस जग से जाने से इंकार किया

आंखों में तैर गई बच्चों की सूरत

जीवन साथी के मोह ने बांध लिया

विचारों का झंझावात मन में उठने लगा

यादों का कारवां दिल में चलने लगा

काया से बिछड़ती आत्मा को मन ने

फिर से अपने मोहपाश में जकड़ लिया

मन माया के जाल में फंसने लगा

काया की आत्मा से फिर जंग छिड़ गयी

महाप्रयाण पर न जाने की जिद ठन गयी

दिल में फिर से जीने की लालसा जग गई

रुकने के बहानों की फिर सूची निकल गयी

दिल में जमी हुई दर्द की सिला पिघलने लगी

जीवन साथी का अकेलापन मन को डसने लगा

बच्चों के रोते चेहरे देख मन व्याकुल होने लगा

अधूरे कामों का लेखा जोखा याद आने लगा

अपनों से दूर जाने का दर्द विकल करने‌ लगा

भूली बिसरी यादों का बवंडर मन में उठने लगा

पर ज्ञान का द्वार जैसे ही खुला

मोक्ष मार्ग फिर याद आने लगा

जीवन से मोहभंग फिर हो गया

काया के बंधन में मन व्याकुल हो गया

प्रभु से मिलने को मन छटपटाने लगा

मोह-माया का द्वार तत्क्षण बंद हो गया

शांत मन फिर अनंत सफ़र पर चल पड़ा

माटी से बना शरीर माटी में मिल गया

चिता की पवित्र अग्नि में वपु जल गया

भस्म हो सब कुछ फिर यहीं रह गया ।।

- डा०मंजू दीक्षित "अगुम"

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डॉ. मंजू दीक्षित "अगुम"

अपने अंदर की उथल-पुथल और मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की एक छोटी सी कोशिश